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नज़्म
क्यूँ ज़ियाँ-कार बनूँ सूद-फ़रामोश रहूँ
फ़िक्र-ए-फ़र्दा न करूँ महव-ए-ग़म-ए-दोश रहूँ
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
वो सूद-ए-हाल से यकसर ज़ियाँ-काराना गुज़रा है
तलब थी ख़ून की क़य की उसे और बे-निहायत थी
जौन एलिया
नज़्म
हबीब जालिब
नज़्म
बरतर अज़ अंदेशा-ए-सूद-ओ-ज़ियाँ है ज़िंदगी
है कभी जाँ और कभी तस्लीम-ए-जाँ है ज़िंदगी
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
गरचे मिल-बैठेंगे हम तुम तो मुलाक़ात के बा'द
अपना एहसास-ए-ज़ियाँ और ज़ियादा होगा
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
हुस्न-ए-अज़ल की है नुमूद चाक है पर्दा-ए-वजूद
दिल के लिए हज़ार सूद एक निगाह का ज़ियाँ!
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
कहाँ हो मतवालो आओ बज़्म-ए-वतन में है इम्तिहाँ हमारा
ज़बान की ज़िंदगी से वाबस्ता आज सूद ओ ज़ियाँ हमारा
अली सरदार जाफ़री
नज़्म
थोड़ी सी आज़ादी मुझ को थोड़ा बहुत वक़्त का ज़ियाँ
कभी कभार की अच्छी बातें किसी किसी का सच्चा प्यार
अबु बक्र अब्बाद
नज़्म
लोग पत्थर हैं तो एहसास-ए-ज़ियाँ कैसे हो
किस को फ़ुर्सत है जो पूछे कि मियाँ कैसे हो
क़ैसर-उल जाफ़री
नज़्म
मिरे बग़ैर भी देखा है ज़ुल्मतों का नुज़ूल
मिरे न होने से उम्मीद का ज़ियाँ क्यूँ हो
साहिर लुधियानवी
नज़्म
इस ज़ियाँ-ख़ाने में कोई मिल्लत-ए-गर्दूं-वक़ार
रह नहीं सकती अबद तक बार-ए-दोश-ए-रोज़गार
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
क्या ख़बर थी इस तरह जी का ज़ियाँ हो जाएगा
''यानी ये पहले ही नज़्र-ए-इम्तेहाँ हो जाएगा''
सय्यद मोहम्मद जाफ़री
नज़्म
मिट के बर्बाद-ए-जहाँ हो के सभी कुछ खो के
बात क्या है कि ज़ियाँ का कोई एहसास नहीं