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नज़्म
इन किताबों ने बड़ा ज़ुल्म किया है मुझ पर
इन में इक रम्ज़ है जिस रम्ज़ का मारा हुआ ज़ेहन
जौन एलिया
नज़्म
साहिर लुधियानवी
नज़्म
चंद रोज़ और मिरी जान फ़क़त चंद ही रोज़
ज़ुल्म की छाँव में दम लेने पे मजबूर हैं हम
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
क़िस्मत का सितम ही कम नहीं कुछ ये ताज़ा सितम ईजाद न कर
यूँ ज़ुल्म न कर बे-दाद न कर
अख़्तर शीरानी
नज़्म
जब धरती करवट बदलेगी जब क़ैद से क़ैदी छूटेंगे
जब पाप घरौंदे फूटेंगे जब ज़ुल्म के बंधन टूटेंगे
साहिर लुधियानवी
नज़्म
हबीब जालिब
नज़्म
जब्र से नस्ल बढ़े ज़ुल्म से तन मेल करें
ये अमल हम में है बे-इल्म परिंदों में नहीं
साहिर लुधियानवी
नज़्म
ज़ुल्म फिर ज़ुल्म है बढ़ता है तो मिट जाता है
ख़ून फिर ख़ून है टपकेगा तो जम जाएगा
साहिर लुधियानवी
नज़्म
ऐ ज़ुल्म के मातो लब खोलो चुप रहने वालो चुप कब तक
कुछ हश्र तो उन से उट्ठेगा कुछ दूर तो नाले जाएँगे
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
मुमकिन है ज़माना रुख़ बदले ये दौर-ए-हलाकत मिट जाए
ये ज़ुल्म की दुनिया करवट ले ये अहद-ए-ज़लालत मिट जाए
आमिर उस्मानी
नज़्म
वो ये कहते हैं तू ख़ुश-नूद हर इक ज़ुल्म से है
वो ये कहते हैं हर इक ज़ुल्म तिरे हुक्म से है