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नज़्म
और इस पे ये शिकायत पढ़ता नहीं है कुछ भी
पढ़ना नहीं तो क्या है हद है ज़्यादती की
बिलक़ीस ज़फ़ीरुल हसन
नज़्म
रू-ए-ज़मीन पर दरिया से ज़्यादा मोहब्बत करने वाला कोई नहीं
दरिया अपने समुंदर की तरफ़ बहता रहता है
सरवत हुसैन
नज़्म
कौन जाने कहाँ मंज़िल-ए-मौज है!
किस जज़ीरे पे है शाह-ज़ादी का घर ऐ मिरे चारा-गर
अमजद इस्लाम अमजद
नज़्म
अकबर इलाहाबादी
नज़्म
वक़्त रटने के लिए कम रह गया ज़्यादा है काम
साल भर जिन को न देखा वो ख़ुलासे नेक-नाम
सय्यद मोहम्मद जाफ़री
नज़्म
ख़र्च का टोटल दिलों में चुटकियाँ लेता हुआ
फ़िक्र-ए-ज़ाती में ख़याल-ए-क़ौम ग़ाएब फ़िल-मज़ार
अकबर इलाहाबादी
नज़्म
शाही दरबारों के दर से फ़ौजी पहरे ख़त्म हुए हैं
ज़ाती जागीरों के हक़ और मोहमल दा'वे ख़त्म हुए हैं
साहिर लुधियानवी
नज़्म
मैं अक्सर देखने जाता था उस को जिस की माँ मरती
और अपने दिल में कहता था ये कैसा शख़्स? है अब भी