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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

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Shafiqur Rahman

1920 - 2000 | Rawalpindi, Pakistan

A celebrated humorist, satirist and short story writer, known for his individual tone of voice.

A celebrated humorist, satirist and short story writer, known for his individual tone of voice.

Shafiqur Rahman

Short story 2

 

Quote 8

ये मर्द ऐवरेस्ट पर चढ़ जाएँ, समंदर की तह तक पहुँच जाएँ, ख़्वाह कैसा ही ना-मुमकिन काम क्यों कर लें, मगर‏ औ'रत को कभी नहीं समझ सकते। बाज़-औक़ात ऐसी अहमक़ाना हरकत कर बैठते हैं कि अच्छी भली मोहब्बत नफ़रत‏ में तबदील हो जाती है, और फिर औ'रत का दिल... एक ठेस लगी और बस गया। जानते हैं कि हसद और रश्क तो औ'रत ‏की सरिशत में है। अपनी तरफ़ से बड़े चालाक बनते हैं मगर मर्द के दिल को औ'रत एक ही नज़र में भाँप जाती ‏है।

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लड़ाई और इम्तिहान के नतीजे का कुछ पता नहीं होता।

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अ'जीब सी बात है कि लोग मोटे ताज़े आदमियों को मुहब्बत से मुस्तस्ना क़रार देते हैं। वो ये तसव्वुर में ला ही नहीं‏ सकते कि एक इंसान जिसका वज़्न अढ़ाई मन से ज़ियादा हो जिसकी दो ठोड़ियाँ हों, जिसकी तोंद तुलूअ' हो रही हो,‏ उसके दिल में भी मुहब्बत का जज़्बा समा सकता है। उ'मूमन यही सोचा जाता है कि इस साइज़ और इस नंबर के आदमी‏ हमेशा खाने पीने की चीज़ों के मुतअल्लिक़ सोचते रहते हैं। चुनाँचे एक फ़र्बा ख़ातून को सुरीली आवाज़ में दर्दनाक गाना‏ गाते देखकर बजाए रोने के हँसी आती है और दिल में यही ख़याल आता है कि अब ये गाना गा कर फ़ौरन एक भारी सा नाश्ता ‏तनावुल फ़रमाएँगी और चंद डकारें लेने के बाद मज़े से सो जाएँगी। उठेंगी तो फिर खाएँगी।

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अगर इसी तरह हर बात में ग़रीब समाज को क़सूरवार ठहराया गया तो वो दिन दूर नहीं जब किसी को बुख़ार चढ़ेगा तो वो‏ मुँह बिसूर कर कहेगा कि ये समाज का क़सूर है। कोई कमज़ोर हुआ तो कहेगा कि ये समाज की बुराई है और अगर कोई बहुत ‏मोटा हो गया तो भी समाज ही को कोसा जाएगा। ना-लायक़ लड़के इम्तिहान में फ़ेल होने की वजह समाज की खोखली बुनियादों ‏को क़रार देंगे। यहां तक कि गालियां भी यूं दी जाएँगी कि “ख़ुदा करे तुझ पर समाज का ज़ुल्म टूटे।”‏

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अक्सर हज़रात अफ़साने को पढ़ने से पहले सफ़हात को जल्दी से उलट-पलट कर देखते हैं और अगर उन्हें कहीं समाज का‏ लफ़्ज़ नज़र जाए तो वो फ़ौरन अफ़साना छोड़ देते हैं। पूछा जाए कि ये क्यों? तो जवाब मिलता है, “जनाब इसका प्लाट तो ‏पहले ही मा'लूम हो गया। यक़ीन हो तो सुन लीजिए!” इसके बाद वो प्लाट भी सुना देंगे जो क़रीब क़रीब सही ही ‏निकलेगा।

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Tanz-o-Mazah 14

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