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बहादुर शाह ज़फ़र

1775 - 1862 | दिल्ली, भारत

आख़िरी मुग़ल बादशाह। ग़ालिब और ज़ौक़ के समकालीन

आख़िरी मुग़ल बादशाह। ग़ालिब और ज़ौक़ के समकालीन

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ग़ज़ल

करेंगे क़स्द हम जिस दम तुम्हारे घर में आवेंगे

नोमान शौक़

ख़्वाह कर इंसाफ़ ज़ालिम ख़्वाह कर बेदाद तू

नोमान शौक़

गालियाँ तनख़्वाह ठहरी है अगर बट जाएगी

नोमान शौक़

तुफ़्ता-जानों का इलाज ऐ अहल-ए-दानिश और है

नोमान शौक़

देख दिल को मिरे ओ काफ़िर-ए-बे-पीर न तोड़

नोमान शौक़

देखो इंसाँ ख़ाक का पुतला बना क्या चीज़ है

नोमान शौक़

न उस का भेद यारी से न अय्यारी से हाथ आया

नोमान शौक़

नहीं इश्क़ में इस का तो रंज हमें कि क़रार ओ शकेब ज़रा न रहा

नोमान शौक़

निबाह बात का उस हीला-गर से कुछ न हुआ

नोमान शौक़

बात करनी मुझे मुश्किल कभी ऐसी तो न थी

नोमान शौक़

भरी है दिल में जो हसरत कहूँ तो किस से कहूँ

नोमान शौक़

मैं हूँ आसी कि पुर-ख़ता कुछ हूँ

नोमान शौक़

मर गए ऐ वाह उन की नाज़-बरदारी में हम

नोमान शौक़

मोहब्बत चाहिए बाहम हमें भी हो तुम्हें भी हो

नोमान शौक़

ये क़िस्सा वो नहीं तुम जिस को क़िस्सा-ख़्वाँ से सुनो

नोमान शौक़

या मुझे अफ़सर-ए-शाहाना बनाया होता

नोमान शौक़

लगता नहीं है दिल मिरा उजड़े दयार में

हबीब वली मोहम्मद

वाँ इरादा आज उस क़ातिल के दिल में और है

नोमान शौक़

वाँ रसाई नहीं तो फिर क्या है

नोमान शौक़

शमशीर-ए-बरहना माँग ग़ज़ब बालों की महक फिर वैसी ही

नोमान शौक़

है दिल को जो याद-ए-फ़लक-ए-पीर किसी की

नोमान शौक़

हम ने तिरी ख़ातिर से दिल-ए-ज़ार भी छोड़ा

नोमान शौक़

याँ ख़ाक का बिस्तर है गले में कफ़नी है

नोमान शौक़

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