बेखुद बदायुनी
ग़ज़ल 18
अशआर 15
अपनी ख़ू-ए-वफ़ा से डरता हूँ
आशिक़ी बंदगी न हो जाए
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कभी हया उन्हें आई कभी ग़ुरूर आया
हमारे काम में सौ सौ तरह फ़ुतूर आया
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ख़ून हो जाएँ ख़ाक में मिल जाएँ
हज़रत-ए-दिल से कुछ बईद नहीं
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वो जो कर रहे हैं बजा कर रहे हैं
ये जो हो रहा है बजा हो रहा है
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