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एजाज़ वारसी

1911 - 1993 | मुरादाबाद, भारत

एजाज़ वारसी

ग़ज़ल 11

अशआर 7

मैं उस के ऐब उस को बताता भी किस तरह

वो शख़्स आज तक मुझे तन्हा नहीं मिला

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राह-रौ बच के चल दरख़्तों से

धूप दुश्मन नहीं है साए हैं

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आप आए हैं हाल पूछा है

हम ने ऐसे भी ख़्वाब देखे हैं

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चढ़ते सूरज की मुदारात से पहले 'एजाज़'

सोच लो कितने चराग़ उस ने बुझाए होंगे

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बरसों में भी छू जाए किसी को तो ग़नीमत

ख़ुशबू-ए-वफ़ा यारो बड़ी सुस्त-क़दम है

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