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हैदर अली आतिश

1778 - 1847 | लखनऊ, भारत

मिर्ज़ा ग़ालिब के समकालीन, 19वीं सदी की उर्दू ग़ज़ल का रौशन सितारा।

मिर्ज़ा ग़ालिब के समकालीन, 19वीं सदी की उर्दू ग़ज़ल का रौशन सितारा।

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ये आरज़ू थी तुझे गुल के रू-ब-रू करते

ये आरज़ू थी तुझे गुल के रू-ब-रू करते अमानत अली ख़ान

यार को मैं ने मुझे यार ने सोने न दिया

यार को मैं ने मुझे यार ने सोने न दिया अमानत अली ख़ान

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क्या क्या न रंग तेरे तलबगार ला चुके अज्ञात

ये आरज़ू थी तुझे गुल के रू-ब-रू करते

ये आरज़ू थी तुझे गुल के रू-ब-रू करते हामिद अली ख़ान

ये आरज़ू थी तुझे गुल के रू-ब-रू करते

ये आरज़ू थी तुझे गुल के रू-ब-रू करते टीना सानी

ये आरज़ू थी तुझे गुल के रू-ब-रू करते

ये आरज़ू थी तुझे गुल के रू-ब-रू करते शफ़क़त अमानत अली

वहशत-ए-दिल ने किया है वो बयाबाँ पैदा

वहशत-ए-दिल ने किया है वो बयाबाँ पैदा मेहदी हसन

सुन तो सही जहाँ में है तेरा फ़साना क्या

सुन तो सही जहाँ में है तेरा फ़साना क्या मेहदी हसन

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सुन तो सही जहाँ में है तेरा फ़साना क्या बेगम अख़्तर

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