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हनीफ़ तरीन

1951 - 2020 | दिल्ली, भारत

हनीफ़ तरीन के शेर

बस्ती के हस्सास दिलों को चुभता है

सन्नाटा जब सारी रात नहीं होता

महफ़िल में फूल ख़ुशियों के जो बाँटता रहा

तन्हाई में मिला तो बहुत ही उदास था

रिश्ते नाते टूटे फूटे लगे हैं

जब भी अपना साया साथ नहीं होता

पानी ने जिसे धूप की मिट्टी से बनाया

वो दाएरा-ए-रब्त बिगड़ने के लिए था

हर ज़ख़्म-ए-कोहना वक़्त के मरहम ने भर दिया

वो दर्द भी मिटा जो ख़ुशी की असास था

रेत पर जलते हुए देख सराबों के चराग़

अपने बिखराव में वो और सँवर जाता है

जिन का यक़ीन राह-ए-सुकूँ की असास है

वो भी गुमान-ए-दश्त में मुझ को फँसे लगे

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Jashn-e-Rekhta | 8-9-10 December 2023 - Major Dhyan Chand National Stadium, Near India Gate - New Delhi

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