हसन शाहनवाज़ ज़ैदी
ग़ज़ल 20
नज़्म 7
अशआर 8
वो मिरे कासे में यादें छोड़ कर यूँ चल दिया
जिस तरह अल्फ़ाज़ जाते हों मुआ'नी छोड़ कर
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तितलियाँ फूल में क्या ढूँढती रहती हैं सदा
क्या कहीं बाद-ए-सबा रख गई पैग़ाम तिरा
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चेहरों को पैरों से कुचल कर आगे बढ़ जाना
जीत इसी को कहते हैं तो फिर मैं हार गया
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