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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

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मलिका नसीम

1954

क्लासिकी ग़ज़ल का समकालीन संवेदना के साथ संगम, बावक़ार निस्वानी लहजे से आरास्ता

क्लासिकी ग़ज़ल का समकालीन संवेदना के साथ संगम, बावक़ार निस्वानी लहजे से आरास्ता

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शायर अपना कलाम पढ़ते हुए
सुलगती शाम की दहलीज़ पर जलता दिया रखना

मलिका नसीम

शायर अपना कलाम पढ़ते हुए

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