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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

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Maroof Raebarelvi's Photo'

मारूफ़ रायबरेलवी

1985 | रायबरेली, भारत

मारूफ़ रायबरेलवी के शेर

तिरे बदन की महक को गुलाब से तश्बीह

कि जैसे कोई दिखाए चराग़ सूरज को

मैं पुर-उमीद रहा मा'रका कोई भी रहा

मगर ये रात कि जिस की कोई सहर ही नहीं

हमारे मुँह पे उड़ाता हुआ वो धूल गया

हमीं ने चलना सिखाया हमीं को भूल गया

आप और कुछ ग़लत कहीं तौबा

जो ये कह दे गुनाहगार है वो

यक़ीन मानव कि उर्दू जो बोल सकता है

वो पत्थरों का जिगर भी टटोल सकता है

हक़ीक़त से हैं कोसों दूर अफ़्सानों को क्या देखें

हों जिन के हाथ नक़ली उन के दस्तानों को क्या देखें

असर दुआओं में होता है किस क़दर 'मारूफ़'

बलाएँ देखी हैं हम ने सरों से टलते हुए

निसार करने लगे अपनी जान परवाने

जाने शम्अ ने क्या कह दिया पिघलते हुए

वक़्त जब आया तो सब दा'वे ज़बानी निकले

यार समझे थे जिन्हें दुश्मन-ए-जानी निकले

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