मोहम्मद नवेद मिर्ज़ा के शेर
तिरी जुदाई का मौसम भी ख़ूबसूरत है
मुझे निकाल रहा है ख़ुमार से बाहर
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उदास रुत है अभी तक मिरे तआक़ुब में
ख़िज़ाँ के फूल खिले हैं बहार से बाहर
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