रिज़्वानुल्लाह के शेर
जहाँ धड़कनों का हिसाब था वहीं कान उस पे लगे हुए
न किसी को फिर भी ख़बर हुई न किसी की उस पे नज़र गई
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कोई रश्क-ए-हुस्न-ए-तमाम था वही क़द्द-ओ-क़ामत-ए-सर्व सा
वही बर्क़ जिस का बयाँ हो क्या जो गिरी तो दिल में उतर गई