सफ़ी औरंगाबादी, बहाउद्दीन, बहबूद अ’ली (1893-1954)मनमौजी आदमी थे। उन के पिता उन्हें हकीम बनाना चाहते थे मगर उन्होंने ता’लीम पूरी नहीं की और कहीं नौकरी करने लगे। कई नौकरियाँ करने के बा’द सब कुछ छोड़ दिया और अपने शागिर्दों की मदद पर तकिया किया। शादी नहीं की।