सरवर आलम राज़
ग़ज़ल 11
नज़्म 1
अशआर 9
आरज़ू हसरत और उम्मीद शिकायत आँसू
इक तिरा ज़िक्र था और बीच में क्या क्या निकला
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बे-कैफ़ जवानी है बे-दर्द ज़माना है
नाकाम-ए-मोहब्बत का इतना ही फ़साना है
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शौक़ है तुझ को ज़माने में तिरा नाम रहे
और मुझे डर है मोहब्बत मिरी बद-नाम न हो
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आग़ाज़-ए-मोहब्बत से अंजाम-ए-मोहब्बत तक
''इक आग का दरिया है और डूब के जाना है'
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देख ये जज़्ब-ए-मोहब्बत का करिश्मा तो नहीं
कल जो तेरे दिल में था वो आज मेरे दिल में है
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