Font by Mehr Nastaliq Web

aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

रद करें डाउनलोड शेर
Syed Aabid Ali Aabid's Photo'

सय्यद आबिद अली आबिद

1906 - 1971 | लाहौर, पाकिस्तान

पाकिस्तान के प्रमुखतम आलोचकों में शामिल

पाकिस्तान के प्रमुखतम आलोचकों में शामिल

सय्यद आबिद अली आबिद के शेर

773
Favorite

श्रेणीबद्ध करें

दम-ए-रुख़्सत वो चुप रहे 'आबिद'

आँख में फैलता गया काजल

तेरे ख़ुश-पोश फ़क़ीरों से वो मिलते तो सही

जो ये कहते हैं वफ़ा पैरहन-ए-चाक में है

इक दिन उस ने नैन मिला के शर्मा के मुख मोड़ा था

तब से सुंदर सुंदर सपने मन को घेरे फिरते हैं

या कभी आशिक़ी का खेल खेल

या अगर मात हो तो हाथ मल

उन्हीं को अर्ज़-ए-वफ़ा का था इश्तियाक़ बहुत

उन्हीं को अर्ज़-ए-वफ़ा ना-गवार गुज़री है

कुछ एहतिराम भी कर ग़म की वज़्अ'-दारी का

गिराँ है अर्ज़-ए-तमन्ना तो बार बार कर

कहते थे तुझी को जान अपनी

और तेरे बग़ैर भी जिए हैं

मेरा जीना है सेज काँटों की

उन के मरने का नाम ताज-महल

इल्तिफ़ात-ए-यार मुझे सोचने तो दे

मरने का है मक़ाम या जीने का महल

वो मुझे मश्वरा-ए-तर्क-ए-वफ़ा देते थे

ये मोहब्बत की अदा है मुझे मालूम था

दर-ए-इख़्लास की दहलीज़ पर ख़म हूँ 'आबिद'

एक जीने का सलीक़ा दिल-ए-बेबाक में है

वाइज़ो मैं भी तुम्हारी ही तरह मस्जिद में

बेच दूँ दौलत-ए-ईमाँ तो मज़ा जाए

साक़िया है तिरी महफ़िल में ख़ुदाओं का हुजूम

महफ़िल-अफ़रोज़ हो इंसाँ तो मज़ा जाए

आज आया है अपना ध्यान हमें

आज दिल के नगर से गुज़रे हैं

जल्वा-ए-यार से क्या शिकवा-ए-बेजा कीजे

शौक़-ए-दीदार का आलम वो कहाँ है कि जो था

शब-ए-हिज्राँ की दराज़ी से परेशान था

ये तेरी ज़ुल्फ़-ए-रसा है मुझे मालूम था

मेरे जीने का ये उस्लूब पता देता है

कि अभी इश्क़ में कुछ काम हैं करने वाले

कोई बरसा सर-ए-किश्त-ए-वफ़ा

कितने बादल गुहर-अफ़शाँ गुज़रे

ग़म-ए-दौराँ ग़म-ए-जानाँ का निशाँ है कि जो था

वस्फ़-ए-ख़ूबाँ ब-हदीस-ए-दिगराँ है कि जो था

ये हादिसा भी हुआ है कि इश्क़-ए-यार की याद

दयार-ए-क़ल्ब से बेगाना-वार गुज़री है

शरअ-ओ-आईन की ताज़ीर के बा-वस्फ़ शबाब

लब-ओ-रुख़्सार की जानिब निगराँ है कि जो था

इश्क़ की तर्ज़-ए-तकल्लुम वही चुप है कि जो थी

लब-ए-ख़ुश-गू-ए-हवस महव-ए-बयाँ है कि जो था

ग़म के तारीक उफ़ुक़ पर 'आबिद'

कुछ सितारे सर-ए-मिज़्गाँ गुज़रे

मुझे धोका हुआ कि जादू है

पावँ बजते हैं तेरे बिन छागल

कभी मैं जुरअत-ए-इज़हार-ए-मुद्दआ तो करूँ

कोई जवाज़ तो हो लुत्फ़-ए-बे-सबब के लिए

ये क्या तिलिस्म है दुनिया पे बार गुज़री है

वो ज़िंदगी जो सर-ए-रहगुज़ार गुज़री है

यही दिल जिस को शिकायत है गिराँ-जानी की

यही दिल कार-गह-ए-शीशा-गिराँ होता है

सुबू उठा कि ये नाज़ुक मक़ाम है साक़ी

अहरमन है यज़्दाँ है देखिए क्या हो

Recitation

Jashn-e-Rekhta 10th Edition | 5-6-7 December Get Tickets Here

बोलिए