सय्यद ज़हीरूद्दीन मदनी के शेर
इक मश्ग़ला ठहरी है तुम्हें रंजिश-ए-बेजा
इक खेल हुआ तुम को सताना मिरे दिल का
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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere