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इब्न-ए-इंशा

1927 - 1978 | कराची, पाकिस्तान

पाकिस्तानी शायर , अपनी ग़ज़ल ' कल चौदहवीं की रात ' थी , के लिए प्रसिद्ध

पाकिस्तानी शायर , अपनी ग़ज़ल ' कल चौदहवीं की रात ' थी , के लिए प्रसिद्ध

इब्न-ए-इंशा के ऑडियो

ग़ज़ल

'इंशा'-जी उठो अब कूच करो इस शहर में जी को लगाना क्या

नोमान शौक़

'इंशा'-जी उठो अब कूच करो इस शहर में जी को लगाना क्या

उस्ताद अमानत अली ख़ान

उस शाम वो रुख़्सत का समाँ याद रहेगा

नोमान शौक़

कल चौदहवीं की रात थी शब भर रहा चर्चा तिरा

नोमान शौक़

किस को पार उतारा तुम ने किस को पार उतारोगे

नोमान शौक़

जब दहर के ग़म से अमाँ न मिली हम लोगों ने इश्क़ ईजाद किया

नोमान शौक़

जल्वा-नुमाई बे-परवाई हाँ यही रीत जहाँ की है

नोमान शौक़

जाने तू क्या ढूँढ रहा है बस्ती में वीराने में

नोमान शौक़

देख हमारी दीद के कारन कैसा क़ाबिल-ए-दीद हुआ

नोमान शौक़

दिल हिज्र के दर्द से बोझल है अब आन मिलो तो बेहतर हो

नोमान शौक़

राज़ कहाँ तक राज़ रहेगा मंज़र-ए-आम पे आएगा

नोमान शौक़

रात के ख़्वाब सुनाएँ किस को रात के ख़्वाब सुहाने थे

नोमान शौक़

शाम-ए-ग़म की सहर नहीं होती

नोमान शौक़

सुनते हैं फिर छुप छुप उन के घर में आते जाते हो

नोमान शौक़

सब को दिल के दाग़ दिखाए एक तुझी को दिखा न सके

नोमान शौक़

नज़्म

एक बार कहो तुम मेरी हो

Fahad Husain

झुलसी सी इक बस्ती में

नोमान शौक़

फ़र्ज़ करो

Fahad Husain

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