aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
1947 | जोधपुर, भारत
महत्वपूर्ण उत्तर-आधुनिक शाइर, साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित
अपनी पहचान भीड़ में खो कर
ख़ुद को कमरों में ढूँडते हैं लोग
उदासी अकेले में डर जाएगी
घड़ी-दो-घड़ी को ख़ुशी भेज दे
ज़रा सी बात थी तेरा बिछड़ना
ज़रा सी बात से क्या कुछ हुआ है
बीच का बढ़ता हुआ हर फ़ासला ले जाएगा
एक तूफ़ाँ आएगा सब कुछ बहा ले जाएगा
यादों की रुत के आते ही सब हो गए हरे
हम तो समझ रहे थे सभी ज़ख़्म भर गए
मन में धरती सी ललक आँखों में आकाश
याद के आँगन में रहा चेहरे का प्रकाश
मन रफ़्तार से भागता जाता है किस ओर
पलक झपकते शाम है पलक झपकते भोर
याद आई परदेस में उस की इक इक बात
घर का दिन ही दिन मियाँ घर की रात ही रात
हम 'कबीर' इस काल के खड़े हैं ख़ाली हाथ
संग किसी के हम नहीं और हम सब के साथ
Bayazen Kho Gayi Hain
1997
Bheed Mein Akela
2001
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Adabi Safar Ke Pachas Baras
2007
Ghalibyat Aur Gupta Riza
1999
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Lafz Dar Lafz
2000
मोज़ेल
2006
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1980
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2010
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