Font by Mehr Nastaliq Web

aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

रद करें डाउनलोड शेर

लेखक : ग़ुलाम रब्बानी ताबाँ

V4EBook_EditionNumber : 001

प्रकाशक : मकतबा जामिया लिमिटेड, नई दिल्ली

मूल : नई दिल्ली, भारत

प्रकाशन वर्ष : 1990

भाषा : Urdu

श्रेणियाँ : शाइरी

उप श्रेणियां : काव्य संग्रह

पृष्ठ : 131

सहयोगी : अंजुमन तरक़्क़ी उर्दू (हिन्द), देहली

ग़ुबार-ए-मंज़िल
For any query/comment related to this ebook, please contact us at haidar.ali@rekhta.org

पुस्तक: परिचय

غلام ربانی تاباں اردو زبان و ادب کی تاریخ میں ایک ممتاز نام ہیں، خاص طور پر انہوں نے جس نوع کے تراجم کیے ہیں وہ کسی طبع زاد تخلیق سے کم نہیں۔ کم ہی لوگ جانتے ہیں کہ انہوں نے شاعری بھی کی ہے۔ زیر نظر ان کی شاعری کا ہی مجموعہ ہے جس میں انہوں نے شاعری کی زبان میں در اصل اپنی حیات کے نشیب و فراز کو بڑے کمال سے برتا ہے۔ ان کا پہلا مجموعہ نظموں کا تھا جو ساز لرزاں کے نام سے شائع ہوا اور ان کی غزلوں کا پہلا مجموعہ حدیث دل کے نام سے آیا ہے۔ اس کے بعد ان کے دو مزید مجموعے ذوق سفر اور نوائے آوارہ کے نام سے منظر عام پر آئے۔ زیر نظر مجموعے میں ان کی وہ کاوشیں بھی شامل کر دی گئی ہیں جو مذکورہ تینوں مجموعوں میں شامل نہیں ہو سکی تھیں۔ فکری طور پر تاباں صاحب ترقی پسند تھے اور یہ رنگ ان کی شاعری میں صاف دیکھا جا سکتا ہے۔

.....और पढ़िए

लेखक: परिचय

ग़ुलाम रब्बानी ताबाँ की गिनती मशहूर प्रगतिशील शायरों में होती है. उन्होंने न सिर्फ़ शायरी की सतह पर प्रगतिशील विचार और सिद्धांत को आम करने की कोशिश की बल्कि इस के लिए व्यवहारिक स्तर भी आजीवन संघर्ष करते रहे. ताबाँ की पैदाइश 15 फ़रवरी 1916 को कायमगंज ज़िला फर्रुखाबाद में हुई. आगरा कालेज से एल.एल.बी.की. कुछ अर्से वकालत के पेशे से सम्बद्ध रहे लेकिन शायरना मेज़ाज ने उन्हें देर तक उस पेशे में रहने नहीं दिया.व कालत छोड़कर दिल्ली आगये और मक्तबा जामिया से सम्बद्ध हो गये और एक लम्बे अर्से तक मकतबे के जनरल मैनेजर के रूप में काम करते रहे.

ताबाँ की शायरी की नुमायाँ शनाख्त उसका क्लासिकी और प्रगतिवादी विचार व स्रजनात्मक तत्वों से गुंधा होना है. उनके यहाँ विशुद्ध वैचारिक और इन्क़लाबी सरोकारों के बावजूद भी एक विशेष रचनात्मक चमक नज़र आती है जिस प्रगतिवादी विचारधारा के तहत की गयी शायरी का अधिक्तर हिस्सा वंचित नज़र आता है. ताबाँ ने आरम्भ में दूसरे प्रगतिवादी शायरों की तरह सिर्फ़ नज़्में लिखीं लेकिन वह अपने पहले काव्य संग्रह ‘ साज़े लर्जां’ (1950) के प्रकाशन के बाद सिर्फ़ ग़ज़लें कहने लगे .उनकी ग़ज़लों के अनेक संग्रह प्रकाशित हुए ,जिनमें ‘हदीसे दिल’,’ज़ौके सफ़र’,’नवाए आवारा’,और ‘गुबारे मंज़िल ‘ शामिल हैं. ताबाँ ने शायरी के अलावा अपने विचारों को आम करने के लिए पत्रकारिता के ढंग का राजनैतिक, सामाजिक, और सांस्कृतिक समस्याओं पर आलेख भी लिखे और अनुवाद भी किये. उनके आलेखों का संग्रह ‘शे’रियात से सियासियात’ तक के नाम से प्रकाशित हुआ.
ताबाँ को उनकी ज़िंदगी में बहुत से ईनाम व सम्मान से भी सम्मानित किया गया. साहित्य अकदेमी एवार्ड ,सोवियतलैंड नेहरु एवार्ड ,उ.प्र.उर्दू एकेडमी एवार्ड और कुलहिन्द बहादुरशाह ज़फ़र एवार्ड के अतिरिक्त पद्मश्री के सम्मान से भी नवाज़ा गया.पद्मश्री का सम्मान ताबाँ ने देश में बढ़ते हुए साम्प्रदायिक दंगों के विरोध में वापस कर दिया था .
7 फ़रवरी1993 को ताबाँ का देहांत हुआ.

.....और पढ़िए
For any query/comment related to this ebook, please contact us at haidar.ali@rekhta.org

लेखक की अन्य पुस्तकें

लेखक की अन्य पुस्तकें यहाँ पढ़ें।

पूरा देखिए

लोकप्रिय और ट्रेंडिंग

सबसे लोकप्रिय और ट्रेंडिंग उर्दू पुस्तकों का पता लगाएँ।

पूरा देखिए

Jashn-e-Rekhta | 8-9-10 December 2023 - Major Dhyan Chand National Stadium, Near India Gate - New Delhi

GET YOUR PASS
बोलिए