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रद करें डाउनलोड शेर

लेखक : सफ़ीर बिलग्रामी

V4EBook_EditionNumber : 002

प्रकाशक : सफ़ीर बिलगिरामी अकादमी, कराची

प्रकाशन वर्ष : 2009

भाषा : Urdu

श्रेणियाँ : भाषा एवं साहित्य, तज़्किरा / संस्मरण / जीवनी

उप श्रेणियां : इतिहास

पृष्ठ : 335

सहयोगी : ख़ानक़ाह मुनीमिया क़मरिया, पटना

तज़्किरा-ए-जलवा-ए-ख़िज़्र
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पुस्तक: परिचय

تذکرہ "جلوہ خضر" صفیر بلگرامی کا تذکرہ ہے۔ یہ دو جلدوں پر مشتمل ایک ضخیم تذکرہ ہے جو آب حیات کے طرز پر لکھا گیا۔ خود مصنف کہتے ہیں، "آب حیات کے دور پنجم کے بعد کے شعرا کے حقوق کی حفاظت کے لئے تذکرہ جلوہ خضر تالیف کیا، اور ترتیب وضع میں آب حیات کی تقلید کی۔" گو کہ یہ تذکرہ آپ حیات کی تقلید میں ہے لیکن چونکہ یہ تذکرہ آب حیات پر اضافہ بھی ہے، اور اس میں ان عام اور چھوٹے شعرا کو بھی لیا گیا ہے جو آب حیات میں چھوٹ گئے تھے، علاوہ ازیں تذکرہ نگار نے اس میں ادبی و لسانی بحثیں بھی کی ہیں۔ اس لئے اس تذکرہ کی اہمیت مزید ہوجاتی ہے۔

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लेखक: परिचय

सैयद फ़रज़न्द अहमद साहित्य में सफ़ीर बिलग्रामी के नाम से जाने गए। उनकी किताब जलवा-ए-ख़िज़्र,आब-ए-हयात पर स्वस्थ आलोचना की वजह से यादगार है। उपन्यास जौहर-ए-मक़ालात (तीन खंडों में) भी उनकी अद्वितीय रचनात्मकता का सबूत है। नाना हज़रत साहब आलम साहब प्रसिद्ध शायर थे। कहते हैं ग़ालिब उन्हें विशेष श्रद्धा से याद करते थे। पूर्वजों में सैयद खुर्शीद अली,सैयद बंदा अली बंदा और सैयद गुलाम अली यहया भी प्रसिद्ध शायर थे। पिता सैयद अब्दुल हई, मीर सैयद अहमद के नाम से जाने गए। सफ़ीर के अनुसार वो आसी के उपनाम से लिखते थे। सफ़ीर नौ साल की उम्र में ही अपने नेत्रहीन नौकर से किस्सा गुल बकावली सुनते और उसे लिख लिया करते थे। एक समय में वो अपने सहपाठियों से गद्य की खूबी और नज़्म के विरोध में बहस किया करते थे। हस्तलिपि-विद्या की कला में निपुण थे। उस समय के एक विशेष कागज शिव राम पूरी जो नया नया शुरू हुआ था उनके दादा ने उन्हें एक दस्ता एक रुपये में खरीद कर दिया था। चौदा पंद्रह साल की उम्र तक फारसी शायरी से दिलचस्पी रही। उन्होंने मीर हसन की तर्ज़ पर एक मसनवी भी लिखी। शायरी में उन्होंने अपना पहला उपनाम क़ुतुब रखा। उसके बाद सात साल में छ: उपनाम रखे। क़ुतुब ,आसिम ,असीम ,सबा, नालां, अहकर और सफ़ीर।  ग़ालिब और दबीर के शिष्य रहे। उनकी पुस्तक महशरिस्तान-ए-ख़्याल में उर्दू और अंग्रेजी शायरी पर दिलचस्प अंदाज़ में चर्चा की गई है।

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