aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
حضرت شیخ سیدنا عبدالقادر جیلانی گیلانی رضی اللہ تعالی ٰ عنہ جن کو غوث اعظم کے نام سے بھی جانا جاتا ہے۔آپ ؒ سنی حنبلی طریقہ کے نہایت اہم صوفی ،شیخ اور سلسلہ قادریہ کے بانی ہیں۔زیر نظر کتاب آپ ؒ کے اوراد پر مبنی ہے جو "اوراد قادریہ " کے نام سے معروف ہیں۔ یہ حضور غوث اعظم ؒ کے ان اورادکا مجموعہ ہے جس کا ورد آپ ہر روز پنج وقتہ فرض نماز کے بعد اپنا معمول بنالیا تھا۔اس اوراد قادریہ کی یہ خصوصیت ہے کہ اس میں عربی عبارت کے ساتھ ساتھ حضرت قاضی سید شاہ اعظم علی صوفی قادری کا آسان سلیس اردو ترجمہ بھی شامل ہے۔جس سے اوراد قادریہ کا ورد کرنے والوں کو سمجھنے میں آسانی ہوگی۔
शेख अब्दुल क़ादिर जीलानी (लगभग १०७७ ई० – ११६६ ई० / ४७०–५६० हिजरी) इस्लामी आध्यात्मिक परंपरा और सूफ़ी विचारधारा के इतिहास में अत्यंत विशिष्ट स्थान रखते हैं। उनका पूरा नाम मुहियुद्दीन अबू मुहम्मद अब्दुल क़ादिर बिन अबू सालेह मूसा अल-जीलानी था। वे वंशानुक्रम से हसन और हुसैन — दोनों परिवारों से जुड़े थे, इसलिए उन्हें “ग़ौस-ए-आज़म” (महान सहायक) के उपाधि से सम्मानित किया गया। उनका जन्म ईरान के जीलान नामक नगर में हुआ, और प्रारंभिक शिक्षा के बाद उन्होंने बग़दाद का रुख किया, जो उस समय इस्लामी विद्या और चिंतन का प्रमुख केंद्र था। वहाँ उन्होंने फ़िक़्ह (धर्मशास्त्र), हदीस (पैग़म्बर की वाणियाँ), तफ़्सीर (क़ुरान की व्याख्या) और तर्कशास्त्र का गहन अध्ययन किया। उनका तप, सादगी और विद्वत्ता शीघ्र ही उन्हें बग़दाद के विद्वानों और साधकों के लिए आदर्श बना दिया।
शेख जीलानी की शिक्षाओं में शरीअत (धार्मिक विधान) और तरीक़त (आध्यात्मिक मार्ग) का अद्भुत संतुलन दिखाई देता है। वे इस बात पर ज़ोर देते हैं कि वास्तविक सूफ़ीवाद क़ुरान और सुन्नत की सीमाओं के भीतर रहकर ही फलित होता है। उनके अनुसार, इबादत का अर्थ केवल बाह्य कर्म नहीं बल्कि दिल की उपस्थिति और ईश्वर-स्मरण में लीनता है। उनके सिद्धांत में तवक़्क़ुल (ईश्वर पर भरोसा), इख़लास (निष्ठा), ज़िक्र (स्मरण), मुराक़बा (ध्यान) और प्रेम-ए-रसूल (पैग़म्बर से प्रेम) आध्यात्मिक जीवन की मूल धुरी हैं। बग़दाद में स्थित उनकी ख़ानक़ाह ज्ञान और आत्मशुद्धि का ऐसा केंद्र बन गई जहाँ दूर-दूर से साधक शिक्षा और मार्गदर्शन पाने आते थे।
उनकी रचनाएँ इस्लामी विधि-शास्त्र, नैतिकता, रहस्यवाद और आध्यात्मिक चिंतन का अनूठा संगम हैं। रीख़्ता वेबसाइट पर उपलब्ध उनकी प्रमुख पुस्तकों में ग़नियत-उत-तालिबीन, औराद-ए-क़ादिरिया, दीवान-ए-ग़ौस-ए-आज़म, सिर्र-उल-असरार, अल-फ़त्ह-रब्बानी व अल-फ़ैज़-रह्मानी और फुतूह-उल-ग़ैब उल्लेखनीय हैं। ग़नियत-उत-तालिबीन में उपासना और आचरण के नियमों का व्यावहारिक विवेचन मिलता है; सिर्र-उल-असरार एक लघु किंतु गहन ग्रंथ है जो साधक को ईश्वर की ओर यात्रा का मार्ग दिखाता है; और फुतूह-उल-ग़ैब में आत्म-शुद्धि और ईश्वर-समीपता के चरणों का विश्लेषण किया गया है।
शोध-परक अध्ययन से यह तथ्य स्पष्ट होता है कि शेख जीलानी ने सूफ़ी परंपरा को अतिशयोक्तिपूर्ण धारणाओं से मुक्त करते हुए उसे क़ुरान और सुन्नत के आलोक में पुनः परिभाषित किया। उनके ग्रंथों में बुद्धि, वह्य (दैवी प्रेरणा) और अनुभव तीनों का अद्भुत संगम दिखाई देता है। यद्यपि कुछ कृतियों या कथाओं की प्रामाणिकता पर आगे भी अनुसंधान अपेक्षित है, तथापि उनकी स्वीकृत रचनाएँ आज भी सुन्नी आध्यात्मिक परंपरा की आधारशिला हैं।
उनकी समग्र शिक्षा का केंद्रबिंदु बंदीगी, नैतिकता और ईश्वर-साक्षात्कार है। उनके अनुसार, विलायत (संतत्व) का अर्थ चमत्कार या सामर्थ्य नहीं, बल्कि सेवा, विनम्रता और ईमान की दृढ़ता है। आज भी बग़दाद में स्थित उनकी दरगाह आध्यात्मिक शांति का प्रतीक बनी हुई है। शेख अब्दुल क़ादिर जीलानी की जीवन-यात्रा और विचारधारा केवल इतिहास का अध्याय नहीं, बल्कि एक जीवंत आध्यात्मिक परंपरा है जो मानवता को सत्य, निष्ठा और ईश्वर-स्मरण की ओर प्रेरित करती है।
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