by ज़ाकिर मलिक भल्लेसी
danish gah
Baba Ghulam Shah Badshah University Ki Tareekh
aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
Baba Ghulam Shah Badshah University Ki Tareekh
एक प्रतिष्ठित लेखक और शोधकर्ता हैं। वे क्षेत्रीय इतिहास, संस्कृति, धरोहर, परंपराओं, रीतियों और भाषाओं के संरक्षण व संवर्धन के प्रति अत्यंत समर्पित हैं।
पिछले वर्षों में मलिक साहब ने 28 से अधिक प्रकाशन तैयार किए हैं, जिनमें छह उल्लेखनीय उर्दू पुस्तकें शामिल हैं। इनमें हज़रत बाबा ग़ुलाम शाह बादशाह : तारीख़, शख़्सियत और करामात, हर दिल अज़ीज़, दानिशगाह : तारीख़ बाबा ग़ुलाम शाह बादशाह यूनिवर्सिटी, सफ़रनामा भल पदरी, राजौरी-पुंछ का तालीमी पस-मनज़र, मेरे बचपन के खेल और मिनार-ए-इल्म: ग़ुलाम हुसैन मलिक दर पयामी : हयात वा ख़िदमात शामिल हैं। इसके अलावा, वे अपनी महान कृति तारीख़-ए-भलेसा पर काम कर रहे हैं, जो सात सौ से अधिक पृष्ठों की एक भव्य पुस्तक है और भलेसा क्षेत्र का विस्तृत ऐतिहासिक विवरण प्रस्तुत करती है।
मलिक का योगदान भाषाओं और साहित्य की सीमाओं से आगे बढ़कर राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर तक फैला हुआ है। उनके लेख स्थानीय, राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हुए हैं। उनकी विद्वत्तापूर्ण सेवाओं के लिए उन्हें मजाज़ अकादमी, लंदन (यूके) की मानद सदस्यता और शरीफ़ अकादमी, फ़्रैंकफ़र्ट (जर्मनी) की सदस्यता भी प्रदान की गई।
ज़ाकिर मलिक भलेसी को तीस से अधिक पुरस्कार प्राप्त हो चुके हैं, जिनमें भारत गौरव पुरस्कार, एशियन एजुकेशन अवार्ड, स्टार इंडिया अवार्ड और यूएन 75 अवार्ड शामिल हैं। उन्होंने ग्यारह राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलनों में सक्रिय भागीदारी की और भारत सरकार के दस कार्यक्रमों में अपनी विशेषज्ञता प्रस्तुत की। वे नेशनल युवा उत्सव और नेशनल डिक्लेमेशन कॉन्टेस्ट में जूरी सदस्य भी रहे।
राष्ट्रीय आयोजनों से उनकी जुड़ाव की शुरुआत कॉलेज के दिनों से हुई। 2001 में उन्होंने गणतंत्र दिवस परेड में जम्मू-कश्मीर का प्रतिनिधित्व किया। इस अवसर पर उन्होंने न केवल ऐतिहासिक राजपथ पर मार्च किया बल्कि तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को गार्ड ऑफ ऑनर देने वाली टुकड़ी का भी हिस्सा बने। यह उनके जीवन का गौरवपूर्ण क्षण रहा।
साहित्यिक और शोध कार्यों के अतिरिक्त उन्होंने सिनेमा में भी अपनी पहचान बनाई। उन्होंने लघु फिल्म लकीर के आर पार का निर्देशन और निर्माण किया, जिसे भारतीय सेना ने चयनित किया और 2022 में दिल मांगे मोर फिल्म फेस्टिवल अवार्ड के लिए नामांकित किया। यह फिल्म 16 दिसंबर 2022 को उधमपुर के ध्रुव ऑडिटोरियम में नॉर्दर्न कमांड द्वारा प्रदर्शित की गई। इसके अलावा उन्होंने इतिहास, संस्कृति, धरोहर, परंपराओं, रीतियों और भाषाओं पर दर्जनों वृत्तचित्र (डॉक्यूमेंट्री) बनाए।
अपनी रचनाओं, शोध, वृत्तचित्रों और रचनात्मक प्रयासों के माध्यम से ज़ाकिर मलिक भलेसी जम्मू-कश्मीर की सांस्कृतिक और ऐतिहासिक धरोहर को उजागर कर रहे हैं और अपने पिता — शिक्षा क्रांति के शिल्पकार जनाब ग़ुलाम हुसैन मलिक की विरासत को आगे बढ़ा रहे हैं।
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