aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
शफ़्क़त काज़मी, सय्यद फ़ज़्लुल-हसन (1914-1975) सादालफ़्ज़ों में गहरी बातें कहने वाले ग़ज़ल शाइर। डेरा ग़ाज़ी ख़ाँ (अब पाकिस्तना) में जन्म। बाक़ायदा शिक्षा पूरी न कर सके, उर्दू-फ़ारसी अपने तौर पर पढ़ी। घर के हालात ख़राब थे जिस से मज्बूर हो कर चपरासी की नौकरी कर ली। ‘हसरत’ मोहानी के शागिर्दों में थे।
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