aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
अख़्तर, अली अख़्तर (1894-1950 ) रामपुर (उत्तर प्रदेश) के, शाइरों के घराने में आँखें खोलीं। पिता शाइर थे और उनके उस्ताद भी। कई साल हैदराबाद में रहे, फिर विभाजन के बाद कराची जा बसे। उन के ख़ानदान के लोग मिर्ज़ा दाग़ देहलवी के रंग में थे, मगर उन पर इक़बाल और असग़र गोंडवी का गहरा असर था, और यही असर उन की शाइरी पर साफ़ ज़ाहिर है।