ज़फ़र ताबाँ
ग़ज़ल 2
अशआर 6
कहते हैं इश्क़ का अंजाम बुरा होता है
अब तो कुछ भी हो मोहब्बत का निभाना है हमें
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याद में तेरी दो-आलम को भुलाना है हमें
उम्र भर अब कहीं आना है न जाना है हमें
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अब भी ख़ुदा-परस्त है दैर-ओ-हरम की क़ैद में
हाए निगाह-ए-ना-रसा हाए मज़ाक़-ए-ना-तमाम
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