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हम ख़ुदा कहते हैं सब जिस को सनम कहते हैं

आलमगीर ख़ान कैफ़

हम ख़ुदा कहते हैं सब जिस को सनम कहते हैं

आलमगीर ख़ान कैफ़

MORE BYआलमगीर ख़ान कैफ़

    हम ख़ुदा कहते हैं सब जिस को सनम कहते हैं

    तुम कहना उसे अल्लाह जो हम कहते हैं

    रंज कहते हैं किसे किस को अलम कहते हैं

    हम तो इस को भी तिरा फ़ज़्ल-ओ-करम कहते हैं

    पड़ के बीमार अयादत को बुलाया तुझ को

    देख रश्क-ए-मसीहा इसे दम कहते हैं

    लोग देते हैं तिरे क़द को अलम से तश्बीह

    हम तिरी ज़ुल्फ़ को दामान-ए-अलम कहते हैं

    अपनी बीमार से अब तक तो है सूजा-फूला

    हाथ पाँव पे चढ़ आया है वरम कहते हैं

    सर भी कट जाए तो यार खाएँ कभी हम

    जिस को कहते हैं क़सम हम उसे सम कहते हैं

    जो जनाज़ा है वो इंसाँ को नसीहत-गर है

    वा'ज़ क्या राह-रव-ए-मुल्क-ए-अदम कहते हैं

    खोल कर नामा-ए-आमाल तो अपना देखें

    माल-ओ-अस्बाब को जो लोग रक़म कहते हैं

    उस ने भेजी है जो ये फूल की बोतल हम को

    हम उसे नख़्ल-ए-मोहब्बत की क़लम कहते हैं

    क़िस्सा-ए-इश्क़ को कब एक ज़बाँ काफ़ी है

    कभी करते हैं बयाँ वो कभी हम कहते हैं

    चश्म-ओ-अबरू-ए-बुताँ शैख़-ओ-बरहमन देखें

    दैर कहते हैं इसे इस को हरम कहते हैं

    मेरे नज़दीक तो ये कम नहीं इज़्ज़त मेरी

    मुझ को वो बंदा-ए-बे-दाम-ओ-दिरम कहते हैं

    सिफ़त-ए-कातिब-ए-तक़दीर के लिखने वाले

    अर्सा-ए-हश्र को मैदान-ए-क़लम कहते हैं

    लोग कहते हैं जिसे पम्बा-ए-मीना साक़ी

    रिंद-ए-मय-ख़्वार उसे अब्र-ए-करम कहते हैं

    साइल-ए-बोसा को तुम ने दिया हाए जवाब

    कुछ कुछ मुँह से बशर ला-ओ-न'अम कहते हैं

    'कैफ़' है याद जिन्हें कलिमा-ए-मूतू हर दम

    अपनी इस हस्ती-ए-फ़ानी को अदम कहते हैं

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