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हो अगर मद्द-ए-नज़र गुलशन में ऐ गुलफ़ाम रक़्स

मुंशी खैराती लाल शगुफ़्ता

हो अगर मद्द-ए-नज़र गुलशन में ऐ गुलफ़ाम रक़्स

मुंशी खैराती लाल शगुफ़्ता

MORE BYमुंशी खैराती लाल शगुफ़्ता

    हो अगर मद्द-ए-नज़र गुलशन में गुलफ़ाम रक़्स

    सूरत-ए-बिस्मिल दिखाए बुलबुल-ए-नाकाम रक़्स

    ख़ाना-ए-मक़्तल में होता है गुमाँ फ़िरदौस का

    मोर बन कर जब दिखाती है तिरी समसाम रक़्स

    वो हवा-ख़्वाह-ए-नसीम-ए-ज़ुल्फ़ हूँ मैं तीरा-बख़्त

    क्यूँ मरक़द पर करे दूद-ए-चराग़-ए-शाम रक़्स

    आरज़ू है इलतिफ़ात-ए-बे-क़रारी से मुझे

    वस्ल में उस को दिखाए हर रग-ए-अंदाम रक़्स

    दम नहीं अपना तड़प कर लौटता है हिज्र में

    रूह को सिखला रहा है मौत का पैग़ाम रक़्स

    'शगुफ़्ता' वो परी-रू मुझ से फ़रमाता है ये

    तुम को दिखलाएँगे अपना आज ज़ेर-ए-बाम रक़्स

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