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इन बुतों से जो रह-ओ-रस्म है जारी रखना

मीर अली औसत रशक

इन बुतों से जो रह-ओ-रस्म है जारी रखना

मीर अली औसत रशक

MORE BYमीर अली औसत रशक

    इन बुतों से जो रह-ओ-रस्म है जारी रखना

    ख़ुदा-वन्द-ए-जहाँ बात हमारी रखना

    पालकी और जनाज़े में नहीं ऐसा फ़र्क़

    जो निभे गोर तक दिल वो सवारी रखना

    ग़म-ओ-दर्द-ओ-अलम ऐश-ए-जहाँ फ़ानी है

    काम आएगा मुलाक़ात तुम्हारी रखना

    गुलशन-ए-हुस्न-ए-बुताँ फूले फले या-अल्लाह

    इस चमन में असर-ए-बाद-ए-बहारी रखना

    चश्म-ए-बुलबुल का कमर-बंद रग-ए-गुल सी कमर

    गुल-बदन की तुम्हें ज़ेबा है कटारी रखना

    आश्ना दोस्त नहीं बहर-ए-फ़ना मुनइ'म

    चश्मा-ए-फ़ैज़ है दौलत इसे जारी रखना

    दिल की ताक़त घटे या नूर घटे आँखों से

    चाहिए ख़ातिर-ए-पुर-नूर तुम्हारी रखना

    लाख अहबाब सताएँ लब-ए-शिकवा खुलें

    मदद हौसला तू बात हमारी रखना

    हमीं बरसों रहे हैं तेरे लिए ख़ाना-ब-दोश

    कुछ जगह दिल में जो रखना तो हमारी रखना

    हम से बातें रहें औरों से रहे ख़ामोशी

    इतनी ग़ुंचा-दहन बात हमारी रखना

    वो मुवह्हिद हूँ कि दिन रात है राज़िक़ से दुआ

    एक सरकार से रोज़ी मिरी जारी रखना

    सर-ए-हासिद के लिए तेग़-ए-ज़बाँ काफ़ी है

    मुझ में आदत मिरे उस्ताद की जारी रखना

    'रश्क' जब तक रहे महमूद रहे दुनिया में

    आबरू बंदे की हज़रत-ए-बारी रखना

    स्रोत:

    इंतिख़ाब-ए-रशक (Pg. 32)

      • प्रकाशक: उत्तर प्रदेश उर्दू अकेडमी, लखनऊ
      • प्रकाशन वर्ष: 1983

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