जज़्बा-ए-इश्क़ भी है गर्मी-ए-बाज़ार भी है
हुस्न-ए-यूसुफ़ का मगर कोई ख़रीदार भी है
शो'ला-ए-तूर भी है जल्वा-गह-ए-बार भी है
देखना ये है कोई तालिब-ए-दीदार भी है
दिल का सौदा मुझे मंज़ूर है लेकिन ऐ दोस्त
मेरा हम-ज़ौक़ भी है मूनिस-ओ-ग़म-ख़्वार भी है
कभी बदले हुए तेवर कभी दुज़्दीदा नज़र
एक ही वक़्त में इक़रार भी इंकार भी है
पुर-ज़िया बज़्म-ए-मसर्रत है ज़िया-ए-ग़म से
जिस जगह फूल महकता है वहाँ ख़ार भी है
चश्म-ए-साक़ी का न मय-ख़्वार सहारा ढूँडें
वो सुख़न-साज़ भी है और जफ़ा-कार भी है
मेरी दुनिया में वही शाम-ओ-सहर हैं अब तक
ज़िंदगी तल्ख़ भी है और गिराँ-बार भी है
दिल हथेली पे लिए सर को झुकाए रहना
उन का मंशा भी है आशिक़ को सज़ा-वार भी है
जब ग़म-ए-दिल को मसीहा की ज़रूरत ही नहीं
अब मैं समझा हूँ ये इक उक़्दा-ए-दुश्वार भी है
'साजिद'-ए-ख़स्ता को आग़ोश-ए-करम में ले ले
तेरा बंदा भी है और तेरा गुनहगार भी है
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