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जो हुस्न-ओ-इश्क़ से अम्न-ओ-अमाँ में रहते हैं

सफ़ी औरंगाबादी

जो हुस्न-ओ-इश्क़ से अम्न-ओ-अमाँ में रहते हैं

सफ़ी औरंगाबादी

MORE BYसफ़ी औरंगाबादी

    जो हुस्न-ओ-इश्क़ से अम्न-ओ-अमाँ में रहते हैं

    कहाँ के लोग हैं वो किस जहाँ में रहते हैं

    कलाम-ए-पाक में है ज़िक्र-ए-हज़रत-ए-यूसुफ़

    ये हुस्न-ओ-इश्क़ हर इक दास्ताँ में रहते हैं

    इलाही अब से हसीनों को मेहरबान बना

    कि तेरे बंदे उन्हीं की अमाँ में रहते हैं

    तुम्हीं तो हो वो जो दर्द-ओ-अलम में रखते हो

    हमीं तो हैं वो जो आह-ओ-फ़ुग़ाँ में रहते हैं

    मुझे तो आप से मतलब है चाँद सूरज कौन

    वो उन को चाहेंगे जो आसमाँ में रहते हैं

    किधर किधर के चले आते हैं ये बे-वहदत

    कहाँ कहाँ के तुम्हारे मकाँ में रहते हैं

    उमीद रंज अलम ज़ब्त दर्द सब्र क़लक़

    ये सब हमारे दिल-ए-ना-तवाँ में रहते हैं

    हज़ारों काम हैं ऐसे भी देख ग़ाफ़िल

    कि बा'द मर्ग भी लोग इस जहाँ में रहते हैं

    ख़ुदा समझ ले लगाने बुझाने वालों को

    ये ख़्वाह-मख़ाह यहाँ में वहाँ में रहते हैं

    इशारे आप की अबरू के कोई क्या जाने

    कि कितने ज़हर के तीर इस कमाँ में रहते हैं

    हमारी ख़ास तरक़्क़ी है ख़ाना-वीरानी

    कभी मकाँ में थे अब ला-मकाँ में रहते हैं

    अगर समझ है तो दिल दे के लुत्फ़-ए-ज़ीस्त उठा

    हज़ार फ़ाएदे उस इक ज़ियाँ में रहते हैं

    ख़याल-ए-दोस्त में रहते हैं 'सफ़ी' जब तक

    तो इस जहाँ में हम उस जहाँ में रहते हैं

    स्रोत:

    Kulliyat-e-Safi (Pg. 209)

    • लेखक: Safi Auranjabadi
      • संस्करण: 2000
      • प्रकाशक: Urdu Acadami Hayderabad
      • प्रकाशन वर्ष: 2000

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