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तुम्हारी याद के जब ज़ख़्म भरने लगते हैं

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

तुम्हारी याद के जब ज़ख़्म भरने लगते हैं

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

MORE BYफ़ैज़ अहमद फ़ैज़

    तुम्हारी याद के जब ज़ख़्म भरने लगते हैं

    किसी बहाने तुम्हें याद करने लगते हैं

    हदीस-ए-यार के उनवाँ निखरने लगते हैं

    तो हर हरीम में गेसू सँवरने लगते हैं

    हर अजनबी हमें महरम दिखाई देता है

    जो अब भी तेरी गली से गुज़रने लगते हैं

    सबा से करते हैं ग़ुर्बत-नसीब ज़िक्र-ए-वतन

    तो चश्म-ए-सुब्ह में आँसू उभरने लगते हैं

    वो जब भी करते हैं इस नुत्क़ लब की बख़िया-गरी

    फ़ज़ा में और भी नग़्मे बिखरने लगते हैं

    दर-ए-क़फ़स पे अँधेरे की मोहर लगती है

    तो 'फ़ैज़' दिल में सितारे उतरने लगते हैं

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    भारती विश्वनाथन

    भारती विश्वनाथन

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    फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

    फ़ैज़ अहमद फ़ैज़,

    फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

    तुम्हारी याद के जब ज़ख़्म भरने लगते हैं फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

    स्रोत :
    • पुस्तक : Nuskha Hai Wafa (पृष्ठ 133)

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