दोस्ती का हाथ
रोचक तथ्य
चलो मैं हाथ बढ़ाता हूँ दोस्ती के लिए... अहमद फ़राज़) के जवाब में
तुम्हारा हाथ बढ़ा है जो दोस्ती के लिए
मिरे लिए है वो इक यार-ए-ग़म-गुसार का हाथ
वो हाथ शाख़-ए-गुल-ए-गुलशन-ए-तमन्ना है
महक रहा है मिरे हाथ में बहार का हाथ
ख़ुदा करे कि सलामत रहें ये हाथ अपने
अता हुए हैं जो ज़ुल्फ़ें सँवारने के लिए
ज़मीं से नक़्श मिटाने को ज़ुल्म ओ नफ़रत का
फ़लक से चाँद सितारे उतारने के लिए
ज़मीन-ए-पाक हमारे जिगर का टुकड़ा है
हमें अज़ीज़ है देहली ओ लखनऊ की तरह
तुम्हारे लहजे में मेरी नवा का लहजा है
तुम्हारा दिल है हसीं मेरी आरज़ू की तरह
करें ये अहद कि औज़ार-ए-जंग जितने हैं
उन्हें मिटाना है और ख़ाक में मिलाना है
करें ये अहद कि अर्बाब-ए-जंग हैं जितने
उन्हें शराफ़त ओ इंसानियत सिखाना है
जिएँ तमाम हसीनान-ए-ख़ैबर-ओ-लाहौर
जिएँ तमाम जवानान-ए-जन्नत-ए-कश्मीर
हो लब पे नग़मा-ए-महर-ओ-वफा की ताबानी
किताब-ए-दिल पे फ़क़त हर्फ़-ए-इश्क़ हो तहरीर
तुम आओ गुलशन-ए-लाहौर से चमन-बर्दोश
हम आएँ सुबह-ए-बनारस की रौशनी ले कर
हिमालया की हवाओं की ताज़गी ले कर
फिर इस के ब'अद ये पूछें कि कौन दुश्मन है
- पुस्तक : Kulliyat-e-Ali Sardar Jafri(Vol-2) (पृष्ठ 530)
- रचनाकार : Ali Ahmad Fatma
- प्रकाशन : Qaumi Council Barai Farog Urdu Zaban New Delhi (1927-2005)
- संस्करण : 1927-2005
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