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अब्दुल अज़ीज़ ख़ालिद

1927 - 2010 | पाकिस्तान

अहम पाकिस्तानी शायर और अनुवादक जिन्होंने विश्वसाहित्य के अनुवाद के साथ ‘गीतांजली’ का उर्दू अनुवाद भी किया

अहम पाकिस्तानी शायर और अनुवादक जिन्होंने विश्वसाहित्य के अनुवाद के साथ ‘गीतांजली’ का उर्दू अनुवाद भी किया

अब्दुल अज़ीज़ ख़ालिद के शेर

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किस को नहीं कोताही-ए-क़िस्मत की शिकायत

किस को गिला-ए-गर्दिश-ए-अय्याम नहीं है

जान का सर्फ़ा हो तो हो लेकिन

सर्फ़ करने से इल्म बढ़ता है

मैं फ़क़त एक ख़्वाब था तेरा

ख़्वाब को कौन याद रखता है

परखने वाले परखेंगे इसी मेआ'र पर हम को

जहाँ से क्या लिया हम ने जहाँ को क्या दिया हम ने

छिलकों के हैं अम्बार मगर मग़्ज़ नदारद

दुनिया में मुसलमाँ तो हैं इस्लाम नहीं है

मग़रिब मुझे खींचे है तो रोके मुझे मशरिक़

धोबी का वो कुत्ता हूँ कि जो घाट घर का

हर चीज़ की होती है कोई आख़िरी हद भी

क्या कोई बिगाड़ेगा किसी ख़ाक-बसर का

कौन मर कर दोबारा ज़िंदा हुआ

कौन मुल्क-ए-फ़ना से लौटा है

क़ुर्ब नस नस में आग भरता है

वस्ल से इज़्तिराब बढ़ता है

अब आसमाँ से सहीफ़े नहीं उतरते मगर

खुला हुआ है दर-ए-इज्तिहाद सब के लिए

ज़मीं-नज़ाद हैं लेकिन ज़माँ में रहते हैं

मकाँ नसीब नहीं ला-मकाँ में रहते हैं

शहीदान-ए-वफ़ा की मंक़बत लिखते रहे लेकिन

की अर्ज़ी ख़ुदाओं की कभी हम्द-ओ-सना हम ने

नई मोहब्बतें 'ख़ालिद' पुरानी दोस्तियाँ

अज़ाब-ए-कशमकश-ए-बे-अमाँ में रहते हैं

पुरसान-ए-परेशानी-ए-इंसाँ नहीं कोई

क़िस्मत की गिरह नाख़ुन-ए-तदबीर से खोलो

हर बात है 'ख़ालिद' की ज़माने से निराली

बाशिंदा है शायद किसी दुनिया-ए-दिगर का

कोई तन्हाई का गोशा कोई कुंज-ए-आफ़ियत

आशिक़-ओ-माशूक़ यकजा हों कहाँ आसमाँ

वरा-ए-फ़र्रा-ए-फ़रहंग देखो रंग-ए-सुख़न

अबुल-कलाम नहीं मैं अबुल-मअानी हूँ

मुहिब्बो राह-ए-उल्फ़त में हर इक शय है मबाह

किस ने खींचा है ख़त-ए-हिज्राँ तुम्हारे दरमियाँ

क़ासिद ये ज़बाँ उस की बयाँ उस का नहीं है

धोका है तुझे उस ने कहा और ही कुछ है

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