aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

रद करें डाउनलोड शेर
Abdullah Javed's Photo'

अब्दुल्लाह जावेद

1931

शायर और अदीब, बच्चों के अदब के साथ साहित्यिक व सामाजिक विषयों पर आलेख भी लिखे

शायर और अदीब, बच्चों के अदब के साथ साहित्यिक व सामाजिक विषयों पर आलेख भी लिखे

अब्दुल्लाह जावेद के शेर

858
Favorite

श्रेणीबद्ध करें

साहिल पे लोग यूँही खड़े देखते रहे

दरिया में हम जो उतरे तो दरिया उतर गया

फिर नई हिजरत कोई दरपेश है

ख़्वाब में घर देखना अच्छा नहीं

कर्बला में रुख़-ए-असग़र की तरफ़

तीर चलते नहीं देखे जाते

इस ही बुनियाद पर क्यूँ मिल जाएँ हम

आप तन्हा बहुत हम अकेले बहुत

तुम अपने अक्स में क्या देखते हो

तुम्हारा अक्स भी तुम सा नहीं है

जब थी मंज़िल नज़र में तो रस्ता था एक

गुम हुई है जो मंज़िल तो रस्ते बहुत

आप के जाते ही हम को लग गई आवारगी

आप के जाते ही हम से घर नहीं देखा गया

सजाते हो बदन बेकार 'जावेद'

तमाशा रूह के अंदर लगेगा

शाइरी पेट की ख़ातिर 'जावेद'

बीच बाज़ार के बैठी है

यक़ीं का दाएरा देखा है किस ने

गुमाँ के दाएरे में क्या नहीं है

ज़मीं को और ऊँचा मत उठाओ

ज़मीं का आसमाँ से सर लगेगा

अश्क ढलते नहीं देखे जाते

दिल पिघलते नहीं देखे जाते

हर इक रस्ते पे चल कर सोचते हैं

ये रस्ता जा रहा है अपने घर क्या

देखते हम भी हैं कुछ ख़्वाब मगर हाए रे दिल

हर नए ख़्वाब की ता'बीर से डर जाता है

तर्क करनी थी हर इक रस्म-ए-जहाँ

हाँ मगर रस्म-ए-वफ़ा रखनी ही थी

कभी सोचा है मिट्टी के अलावा

हमें कहते हैं ये दीवार-ओ-दर क्या

मंज़रों के भी परे हैं मंज़र

आँख जो हो तो नज़र जाए जी

समुंदर पार बैठे मगर क्या

नए मुल्कों में बन जाते हैं घर क्या

Recitation

Jashn-e-Rekhta | 2-3-4 December 2022 - Major Dhyan Chand National Stadium, Near India Gate, New Delhi

GET YOUR FREE PASS
बोलिए