अब्दुर्रशीद क़मर
ग़ज़ल 4
अशआर 1
रावन था मैं तो उफ़ की भी जुरअत किसी में थी
बन-बास मिल गया जो 'क़मर' राम क्या हुआ
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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere