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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

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अहमद फ़क़ीह

ग़ज़ल 6

अशआर 4

वो जाता रहा और मैं कुछ बोल पाया

चिड़ियों ने मगर शोर सा दीवार पे खींचा

अहल-ए-ख़िरद इसे समझ पाएँगे 'फ़क़ीह'

कुछ मसअले हैं मावरा फ़तह शिकस्त से

आज मुझे अपनी आँखों से उस के क़ुर्ब की ख़ुशबू आई

मेरी नज़र से उस ने शायद अपने-आप को देखा होगा

यूँ दर्द ने उम्मीद के लड़ से मुझे बाँधा

दरियाओं को जिस तरह किनारा करे कोई

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