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अली हैदर अल्वी

ग़ज़ल 8

नज़्म 2

 

अशआर 12

इस तजस्सुस में ही साहिल पे खड़ा रहता हूँ

ये समंदर भी किसी आँख का पानी तो नहीं

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कोई साहिल-मिज़ाज है जिस ने

मुझ समंदर का ए'तिबार किया

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ये वो निदा है जो सब तक ख़ुदा से आती है

कि ना'त फ़न से नहीं इल्तिजा से आती है

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वो पाँव रखने लगी है नदी के पानी में

हुजूम गाँव का मश्कीज़े ले के बैठा है

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शा'इरी कर्बला है जिस पर से

हर पयम्बर गुज़र के आता है

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