अनवार अहमद क़ुरैशी नश्तर
ग़ज़ल 4
अशआर 1
ग़म का साथी कौन है ये सोच कर तन्हा था मैं
साथ लेकिन मेरे 'नश्तर' रो रही थी चाँदनी
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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere