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अरशद जमाल सारिम

मालेगांव, भारत

अरशद जमाल सारिम

ग़ज़ल 15

अशआर 16

क्या कहूँ कितना फ़ुज़ूँ है तेरे दीवाने का दुख

इक तरफ़ जाने का ग़म है इक तरफ़ आने का दुख

मुमकिन है यही दिल के मिलाने का सबब हो

ये रुत जो हमें हाथ मिलाने नहीं देती

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बस इतना रब्त काफ़ी है मुझे भूलने वाले

तिरी सोई हुई आँखों में अक्सर जागता हूँ मैं

जाने उस ने खुले आसमाँ में क्या देखा

परिंदा फिर से जहान-ए-क़फ़स में लौट आया

ज़िंदगी तू भी हमें वैसे ही इक रोज़ गुज़ार

जिस तरह हम तुझे बरसों से गुज़ारे हुए हैं

पुस्तकें 1

 

चित्र शायरी 1

 

वीडियो 4

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वीडियो का सेक्शन
शायर अपना कलाम पढ़ते हुए
कहाँ कहाँ से सुनाऊँ तुम्हें फ़साना-ए-शब

अरशद जमाल सारिम

किश्त-ए-एहसास में थोड़ा सा मिला लेंगे तुझे

अरशद जमाल सारिम

फ़ना हुआ तो मैं तार-ए-नफ़स में लौट आया

अरशद जमाल सारिम

बस कि इक लम्स की उम्मीद पे वारे हुए हैं

अरशद जमाल सारिम

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