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असर फ़रीदी

1956 | सासाराम, भारत

असर फ़रीदी

ग़ज़ल 4

 

अशआर 2

तुम्हारी बात से सब मुत्तफ़िक़ हों ना-मुम्किन

हर एक शख़्स का अपना ख़याल होता है

असर 'फ़रीदी' हक़ीक़त है ये फ़साना नहीं

उरूज जिस का हो उस का ज़वाल होता है

 

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