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Asghar Velori's Photo'

असग़र वेलोरी

1931 | चेन्नई, भारत

असग़र वेलोरी के शेर

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तिरे महल में हज़ारों चराग़ जलते हैं

ये मेरा घर है यहाँ दिल के दाग़ जलते हैं

शिकार अपनी अना का है आज का इंसाँ

जिसे भी देखिए तन्हा दिखाई देता है

लोग अच्छों को भी किस दिल से बुरा कहते हैं

हम को कहने में बुरों को भी बुरा लगता है

दुनिया से ख़त्म हो गया इंसान का वजूद

रहना पड़ा है हम को दरिंदों के दरमियाँ

रौशनी जब से मुझे छोड़ गई

शम्अ रोती है सिरहाने मेरे

उन के हाथों से मिला था पी लिया

ज़हर था पर ज़ाइक़ा अच्छा लगा

मुझ को ग़म का कभी दर्द का एहसास रहा

हर ख़ुशी पास थी जब तक तू मिरे पास रहा

चारागरो पास तुम्हारे मिलेगी

बीमार-ए-मोहब्बत की दवा और ही कुछ है

खिलना हर एक फूल का 'असग़र' है मोजज़ा

मुरझाती है कली भी बहारों के दरमियाँ

जितना रोना था रो चुके आदम

और रोएगा आदमी कब तक

पढ़ते थे किताबों में क़यामत का समाँ

नेपाल में कुछ इस का नमूना देखा

तू ने अब तक जिसे नहीं समझा

और फिर उस की बंदगी कब तक

ज़िंदगी से समझौता आज हो गया कैसे

रोज़ रोज़ तो ऐसे सानेहे नहीं होते

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