असग़र वजाहत की कहानियाँ
उनका डर
इस कहानी में अमरीका में चंद आला तालीम-याफ़ता तबक़े के मुकालमों के ज़रीए मुआशिरती तज़ाद को उजागर करने की कोशिश की गई है। अपने मालिक की बे-रोज़गारी, पढ़े-लिखे लोगों की बे-वक़्अती, फ़साद और पसमांदगी से घबरा कर अमरीका हिजरत करने वाले लोग वहाँ भी इस्लामी माहौल पैदा करने, उर्दू और मुशाईरों को ज़िंदा करने की बात करते हैं लेकिन उनकी गुफ़्तगू का एक एक जुमला सिर्फ़ पैसे के इर्द-गिर्द घूमता है और पैसा पैदा करने के लिए वो हर मुम्किन हर्बा आज़माने के लिए तैयार हैं। उनका डर ये है कि कहीं उनकी बेटियाँ स्कूल में सेक्स एजूकेशन की वजह से अपने ब्वॉय फ़्रेंड्ज़ के साथ मुबाशिरत न करने लगें, इसलिए मश्वरा दिया जाता है कि उन्हें चौदह-पंद्रह साल के बाद वतन भेज दिया जाए लेकिन वतन भेजने में जो परेशानियाँ और मसाइल हैं उनका ख़्याल आते ही सब चुप हो जाते हैं।
सरगम कोला
आर्ट और कल्चर के नाम पर जारी लूट-खसूट और फ़न से बे-बहरा लोगों को तंज़ की ज़द में लिया गया है। दास गुप्ता संगीत पारखी हैं लेकिन उनके पास टिकट के पैसे नहीं हैं कि वो अंदर जा सकें इसलिए वो ऑडीटोरियम के बाहर ही पान खोखा पर जा कर आग तापने लगते हैं। अंदर से नौजवानों का एक ग्रुप आता है जो मुसलसल इंग्लिश में बात करता है और जिसका संगीत से दूर-दूर तक कोई वास्ता नहीं सिवाए उसके कि वो आला तबक़े से हैं और टिकट ख़रीदने के लिए उनके पास पैसे हैं या मुफ़्त में उनको टिकट फ़राहम किया गया है। आख़िर में एक पुलिस अफ़्सर का ड्राईवर अंदर से चार पास माँग लाता है, एक पास दास गुप्ता को दे देता है और तीन आग में डाल देता है।