अतहर राज़ के शेर
हम गर्दिश-ए-गिर्दाब-ए-अलम से नहीं डरते
तूफ़ाँ है अगर आज किनारा भी तो होगा
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यूँ तसव्वुर में दबे पाँव तिरी याद आई
जिस तरह शाम की बाँहों में सितारे आए
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गिरती हुई दीवार का साया था तिरा साथ
फिर भी तिरी बाहोँ से जुदा थे तो हमीं थे
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