बद्र मुनीर
ग़ज़ल 32
अशआर 33
कचरे से उठाई जो किसी तिफ़्ल ने रोटी
फिर हल्क़ से मेरे कोई लुक़्मा नहीं उतरा
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इस से बढ़ कर और क्या हम पर सितम होगा 'मुनीर'
मशवरा माँगा है इस ने फ़ैसला करने के बा'द
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कुंज-ए-हैरत से चले दश्त-ए-ज़ियाँ तक लाए
कौन ला सकता है हम दिल को जहाँ तक लाए
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