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बीना गोइंदी

1967 | संयुक्त राज्य अमेरिका

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ग़ज़ल 10

चाँदनी-रात में बुलाऊँ तुझे

आकाश पे बादल छाए थे

उन की आमद से जो अरमान मचल जाते हैं

तेरा हर ग़म चुरा लिया होता

बंद हथेली में हैं सब

समस्त

नज़्म 6

रात का आख़िरी पहर

रात का आख़िरी पहर भी

आचानक

कभी सोचा भी न था कि

झूमर

मुझे भी आज इक झूमर पहनना है

मिट्टी की प्याली

चक्कर खाती चर्ख़ी पर

चलो फिर वापस मुड़ जाएँ

जवानी में क्या रक्खा है

समस्त
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