जी आर कँवल के शेर
अश्क मायूस सवाली की तरह लौट गए
वो मिला भी तो मुलाक़ात ने रोने न दिया
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दिन को फ़ुर्सत न मिली अश्क बहाने की कभी
रात आई तो मुझे रात ने रोने न दिया
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टैग : गिर्या-ओ-ज़ारी
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