हिरमाँ ख़ैराबादी के शेर
ज़माने की बरगश्तगी का ये 'आलम
कि हर शय को दामन-कशाँ देखता हूँ
इक अंदाज़-ए-वारफ़्तगी है न पूछो
किसे देखता हूँ कहाँ देखता हूँ
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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere