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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

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इबरत गोरखपुरी

1859 - 1918

इबरत गोरखपुरी

अशआर 3

ज़िंदगानी की हक़ीक़त से नहीं हम वाक़िफ़

मौत का नाम जो सुनते हैं तो मर जाते हैं

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आराम किसे देती है अय्याम की गर्दिश

सीधा कोई हलचल में खड़ा हो नहीं सकता

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वो दिल है मिरा हो नहीं सकता जो शगुफ़्ता

वो बाग़ मिरा है जो हरा हो नहीं सकता

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